अब तक कोविड-19 महामारी से 12 करोड़ से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं जिसके चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था लगभग 4 प्रतिशत तक सिकुड़ गई है। हालांकि, कोरोनावायरस के खिलाफ वैश्विक लड़ाई लड़ी जा रही है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर यह लड़ाई कैसे जीती जाए। दरअसल, दुनिया के कई हिस्सों में महामारी अभी भी फैल रही है और कोई भी देश तब तक सुरक्षित नहीं हो सकता जब तक सभी देश वायरस से मुक्त न हो जाएं।
इसलिए, प्रभावी रूप से वायरस का निपटारा करने के लिए सभी देशों को एक साथ काम करने और समन्वित, सामूहिक कार्रवाई करने की आवश्यकता है। वैश्विक सहयोग एक विकल्प नहीं है, बल्कि एक आवश्यकता है।
महामारी के खिलाफ लड़ाई का राजनीतिकरण नहीं करने की जरूरत है, क्योंकि भू-राजनीति वैश्विक सहयोग में सबसे बड़ी बाधा है। उदाहरण के लिए, गैर-पश्चिमी देशों द्वारा विकसित और निर्मित टीकों को निष्क्रिय बताना, और चीन के प्रयासों को वैक्सीन कूटनीति करार देना, कुछ पश्चिमी राजनेताओं और मीडिया ने महामारी के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को क्षीण कर दिया है।
जैसा कि एक चीनी कहावत है, जो आदमी दिन के उजाले में भूत देखता है, उसके दिल में अक्सर एक भूत होता है। इसी तरह, वे पश्चिमी राजनेता जो चीन पर कीचड़ उछाल रहे हैं, शायद उसके पीछे उनकी बुरी मंशा और छिपे हुए एजेंडे शामिल हैं। जब तक पश्चिम चीन के खिलाफ अपने वैचारिक पूर्वाग्रह को नहीं हटाता है, तब तक वह सत्य को स्वीकार नहीं कर सकता है, और इस तरह वैश्विक सहयोग में बाधाएं खड़ी करता रहेगा।
लोगों का जीवन, चाहे वे किसी भी देश के हों, कीमती हैं। इसलिए सभी सरकारों के लिए जीवन बचाना सबसे महत्वपूर्ण होना चाहिए। जब लाखों लोगों का जीवन दांव पर लगा हो, तो क्या नेताओं को वायरस को हराने के लिए दूसरों के साथ काम करने के लिए नैतिक रूप से बाध्य नहीं होना चाहिए? इसलिए चीनी-निर्मित टीकों के बारे में झल्लाहट करने के बजाय, सभी देशों को वायरस का मुकाबला करने के लिए एक साथ आना चाहिए।
टीकों में जनता का भरोसा बढ़ाना वायरस को मात देने का एक और महत्वपूर्ण उपाय है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के माध्यम से कम विकसित देशों में कारगर तरीके से टीके उपलब्ध करवाये जा सकते हैं, जिसके लिए संयोग से द्विपक्षीय ²ष्टिकोण के बजाय बहुपक्षीय अपनाने की आवश्यकता होगी। देशों के लिए न्यायसंगत ²ष्टिकोण को देखते हुए, केवल डब्ल्यूएचओ टीकों को इस तरह से वितरित कर सकता है कि कोई भी देश पीछे नहीं रहे।
कुछ पश्चिमी राजनेता और मीडिया चीनी-निर्मित टीकों की प्रभावकारिता पर सवाल उठाते रहे हैं जबकि कई प्रमाण मौजूद हैं कि चीनी टीकें अत्यधिक प्रभावी और सुरक्षित हैं। 10 से अधिक देश अपने यहां चीनी निर्मित टीकों को मंजूरी दे चुके हैं। तब भी, चीनी-निर्मित टीकों को निष्क्रिय बताना समझ से परे है।
हालांकि, अमीर देशों ने वैश्विक वैक्सीन आपूर्ति का बहुत बड़ा हिस्सा हड़प लिया है, जो अब तक दुनिया भर में खरीदी गई 8.2 अरब खुराक की कुल 5.8अरब खुराक है, जबकि एशिया और लगभग पूरे अफ्रीका में वैक्सीन का अकाल बना हुआहै। विश्व व्यापार संगठन की महानिदेशक एन्गोजी ओकोंजो-इवेला का कहना है कि लोग गरीब देशों में मर रहे हैं।
विशेष रूप से आपातकाल के समय में साझा करना महत्वपूर्ण है। यदि अमीर देश अपनी अत्यधिक टीकों की खुराक में कमी करते हुए विकासशील देशों, विशेष रूप से कम-विकसित देशों को देते हैं, तो वे न केवल कीमती जीवन को बचाने में मदद करेंगे, बल्कि गरीब देशों के साथ एकजुटता भी दिखाएंगे और विकसित विश्व की वैश्विक छवि को सुधार सकेंगे, जो टीके की जमाखोरी से धूमिल हो गई है।